- भंवरसिंह सामौर
चूरू री धोरां-धरती अलेखूं नखतर्यां री जलम भौम है। अठै रा लाडेसर आपरै तेज अर हेज सूं हरमेस आखी भौम रा मनभावणा-मनचावणा रैया है। राजस्थान ई नीं, राजस्थान सूं बारै-ई अठै रै मानखै आपरी हाजरी मंडायी है। देस-दिसावर रा जूझारू ब्यौपारी अर फौजां रा बांकीला रंगरूटां तो इण धरती नै खासी बडम दीरायी-ई दीरायी है, पण अठै रा कलमधणी लिखारा ई आपरी न्यारी-निकेवळी पिछांण करायी है।
भरत व्यास, मेघराज मुकुल, कन्हैयालाल सेठिया, रावत सारस्वत आद इण सईकै रै खास लिखारां रा नांव है, जकां साहित्य-आभै मांय नुंवै अंदाज सूं थरपीज्या। जूनी बातां करां तो घणां ई लिखारा रा नांव चेतै आय सकै, जकां रै पांण इण छेतर रो नांव गरबीजै, पण आपां नै बात रावत सारस्वत सूं सरू करणी है, इण कारणै आपां चेतै करां 1921ई. री 22 जनवरी नै। इणी दिन चूरू रै कुर्विलाव सारस्वतां रै घरां नखतरी रावत सारस्वत रो जलम हुयो। पिता रो नांव हनुमानप्रसाद सारस्वत अर मां रो नांव श्रीमती बनारसी देवी।
रावत सारस्वत री सरूवाती पढाई चूरू मांय ई हुयी। वै पढण मांय घणा हुंसियार हा। आठवीं ताणी बोर्ड मांय पैली ठौड़ लेय`र छात्रवृत्ति रा हकदार बण्या। सन् 1939 मांय बीकानेर बोर्ड सूं हाईस्कूल परीक्षा पास करी अर इण परीक्षा मांय बीकानेर स्टेट मांय प्रथम स्थान हासळ कर्यो। सन् 1941 मांय आगरा विश्वविद्यालय, आगरा सूं प्रथम श्रेणी सूं बीए री डिग्री लीन्ही। सन् 1947 मांय नागपुर विश्वविद्यालय सूं प्रथम श्रेणी मांय एमए अर सन् 1949 मांय राजस्थान विश्वविद्यालय सूं प्रथम श्रेणी मांय एलएल.बी. री डिग्री लीन्ही।
रावत सारस्वत सन् 1941 सूं 1944 ताणी अनूप संस्कृत लाईब्रेरी, बीकानेर मांय पुराणा संस्कृत, डिंगळ-पिंगळ अर प्राकृत रा ग्रंथां माथै सहायक लाइब्रेरियन रै हैसियत सूं काम कर्यो। आं वांरी साधना स्थळी बणी अर अठै जको कीं सीख्यो वो रावतजी रै आखी उम्र काम आयो।
सन् 1945 सूं 1952 ताणी पत्रकारिता पेटै काम कर्यो। इणी दिनां आप साधना प्रेस, राजपूत प्रेस, जयपुर मांय काम कर्यो। सन् 1952 सूं 1982 ताणी इंडियन रेडक्रास सोसाइटी, राजस्थान रा संगठन सचिव रै रूप मांय काम कर्यो अर आखै राजस्थान बडम पायी।
सन् 1953 मांय राजस्थान भाषा प्रचार सभा री थरपणा कर`र रावतजी सभा रा संस्थापक सचिव बण्या। इणी संस्था सूं 'मरुवाणी` राजस्थानी मासिक री सरूवात हुयी। फगत मरुवाणी रै जोगदान पेटै रावतजी नै आखो राजस्थानी कड़ूम्बो कदै-ई नीं भूल सकै। मरुवाणी अलेखूं राजस्थानी लिखारा त्यार कर्या अर राजस्थानी भासा नै एक गति दीन्ही।
राजस्थान भाषा प्रचार सभा, जयपुर रै कामां मांय राजस्थानी पारखी, राजस्थानी विशारद, अर राजस्थानी प्रथमा परीक्षावां रो संचालण जबरो काम गीणीजै। अैड़ो काम राजस्थानी मांय फगत रावतजी अर कर्यो, आजताणी दूजो कोयी नीं कर सक्यो है। रावतजी आं परीक्षावां री व्यवस्था एक विश्वविद्यालय री परीक्षावां भांत करता अर आखै देस मांय राजस्थानी सूं जुड़ाव राखणवाळा नै परीक्षा केंद्र सूंप`र परीक्षावां आयोजित करवांवता। चूरू मांय श्री बैजनाथजी पंवार, बिसाऊ मांय डॉ. उदयवीर शर्मा, बीकानेर मांय श्रीलाल नथमल जोशी इण केंद्रां रा संचालक हा। आखै देस रा अलेखूं विद्यार्थियां परीक्षावां दीन्हीं अर राजस्थानी सीख`र राजस्थानी सूं जुड़्या।
लेखन रै औळै-दोळै आपां रावतजी री बात करां तो वां री बीस सूं बेसी पोथ्यां विद्वता री साख भरै। महादेव पार्वती री वेलि, दळपत विलास, डिंगल गीत, चंदायन, प्रबंध पारिजात, जसवंतसिंघ री ख्यात आद रो संपादन कर`र जूनी राजस्थानी नै नुंवै ढंग सूं पळोटी। रावतजी आज री कवितावां, आज री राजस्थानी कहाणियां पोथ्यां रै मारफत आधुनिक राजस्थानी नै नुंवां संदर्भ दीन्हां। मीणा इतिहास, आइडेण्टिटी ऑफ रावल्स इन राजस्थान पोथ्यां रावतजी री इतियासूं दीठ नै चवड़ै करै।
दुरसा आढ़ा, प्रिथीराज राठौड़ री जीवनीपरक पोथ्यां मांयली रावतजी री टीप विद्वता बखांणै। जफरनामो अर बसंरी अनूदित पोथ्यां रावतजी नै जबरो अनुवादक घोषित करै। राजस्थानी साहित्यकार परिचय कोश रो दो भाग जकां देख्या है, वै जाणै कै रावत जी कित्ता मिणत करणवाळा मानवी हा। औ पैलो प्रयोग सांवठो हो।
रावतजी री कविता पोथी 'बखत रै परवांण` किण सूं अछानी है। रावतजी री मौलिक सिरजणां इण पोथी मांय भेळी है। जकी वांनै अमर राखसी।
खुद रै लेखण सूं बत्ती रावतजी दूजां रै लेखण सूं मोह राखता। दूजां री रचनावां सुधारण अर छपावण पेटै वां रो घणो-ई बगत जाया होंवतो। पण वो बखत राजस्थानी नै अेक गरबीलो इतियास देयग्यो। श्री यादवेन्द्र शर्मा चंद्र रो उपन्यास 'हूं गोरी किण पीव री`, छत्रपतिसिंह रो उपन्यास 'तिरसंकू`, मनोहर शर्मा संपादित 'कुंवरसी सांखलो` रामनाथ व्यास परिकर री काव्यकृति 'मनवार`, धोकळसिंह री 'मरु महिमा` मदनगोपाल शर्मा री 'गोखै ऊभी गोरड़ी` आद पोथ्यां रावतजी री अगवाणी पांण साम्ही आयी। अै सगळी पोथ्यां आज राजस्थानी साहित्य रै इतियास मांय सोनल आंकां मांय चिलकै।
'राजस्थान का साहित्यकार : समस्याएं और समाधान`, 'राजस्थानी और हिन्दी : कुछ साहित्यिक संदर्भ` आद दस्तावेज रावतजी री जबरी दीठ रा गवाह है।
अै तो फगत गिणावण जोग रावतजी रा कारज है। एक संस्था री मानिंद रावतजी आखी उम्र काम कर्यो। संस्था मांय घणा इस्या काम हुवै, जका नींव रा भाटां री दांईं चवड़ै कोनी दीखै, पण हुवै घणा महताऊ। रावतजी जका काम कर्या अर आखै राजस्थानी भासा समुदाय नै जकी टीम सूंपी, वा गिनार करण जोग बात है।
16 दिसम्बर, 1989 नै रावतजी देवलोक हुया।
आपां सगळां नै रावत जी माथै गरब अर गुमान करणो चाहीजै। खासकर इण कारणै कै वै एक सांचला राजस्थानी हेताळू हा, अर आखी जिंदगाणी ताणी काम करता रैया। रावतजी पढ़ाई मांय जबरा हुंसियार हा अर वै चांवता तो उण बगत घणी आच्छी नौकरी पकड़ सकै हा, पण वां आपरी चावणा फगत राजस्थानी भासा सेवा मांय लगा दीन्ही। तद ईज तो वै आज अमर है।
रावत जी चुरु री साहित्य चेतना र आगीवाण हा.आज म्हाने वां पर घणो गुमेज़ है.वां रो लगायोडो रो साहित्य रो पौधो आज रूंख बणने रे मार्ग चाल रयो है.रावत सारस्वत जी ने हिवडे सूं नमन.
ReplyDeleteशानदार रचना, बधाई।
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क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?
नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।
नमन करते हुए... और. बढ़िया प्रदर्शन किया है जो इस बात की पुष्टि करते हैं
ReplyDeletevery great person in charan samaj
ReplyDeleteHAMARE SAMAJ KE GORAV HAI SAMOUR SAHAB
ReplyDeleteHAMARE SAMAJ KE GORAV HAI SAMOUR SAHAB
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